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( २५) दुरध्या दुःख मिटावो । जभी आनन्द आवेगा।
॥ विना ॥ ७ ॥
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॥ श्रीजिनवाणी स्तवन ॥ अणी भोलुने कुण--
भरमावियो ।। यह देशी ।। देवी जिनन्द वाणी सुख कारणीरे । मनोवांछित पूरे हाम ।। देवी० ॥ ७० ॥ अणी देवीनो दर्शन दोहिलो रे ।। पूर्व सश्चित होवे पुण्य ॥ देवी ॥ १ ॥ देवी सर्व भूपण कर सोहतीरे। जिम थावे सूर्य प्रकाश ॥ देवी ॥ २ ॥ देवीने मस्तक मुगट विवेकनोरे । कोट पहर्या ब्रह्म नवसरहार ॥ देवी ॥ ३ ॥ देवी हाथे खड्ग लियो ज्ञानको रे। वसु वेरी हणत विकाल ॥ देवी ॥ ४ ॥
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