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ज्ञान गुणाकी संपती दाता । तीन लोक दरम्यान ॥ भवोदधि तारण पार उतारण । ज्ञान प्रकाशक भार ॥ हो गुरु ॥ २ ॥ चन्द्र तणी परे शीतल सोहे | अदित्य तेज प्रकाश || विनयवंत विवेकी विचक्षण ।
॥ हो गुरु ॥ ३ ॥
पूरो मनकी आश रत्नचन्दजी महाराज के गणमें | जेष्ट शिष्य अभिराम ॥
जवाहर लालजी की यशः कीर्ती । फेल रही ठामो ठाम ॥ हो गुरु ॥ ४ ॥ गुण गावो गुणवंतको देखी । } परिक्षा हियामें आण ॥ नुगुरा नरका गुण किम गावे |