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________________ ( २००) भला; उनका ।। कान्फ्रेंस ॥ १॥ पातिक प्रांतिक भेज उपदेशक । जयविजय करावती है रे ॥ भला; जय ॥ कान्फ्रेंस ॥२॥ कूकू रिवाज आज तक केइ । उनको दूर हटावती है रे॥ भला; उनको ॥ कान्फ्रेंस ॥३॥ संपतीकरनीविपतीकीहरनीधर्मीकोराजदिलावतो हैरे भला, धर्मी ॥ कान्फ्रेंस ॥ ४॥ जीव दयाका प्रबंध रचावत । सब संघसे भक्ति बढावती हैरे। भला सब कान्फ्रेंस ॥ ५॥ कान्फ्रेंस कानून बतावता लोकिक सुधार करावतीहैरे भला, लोकिक ॥ कान्फ्रेंस ॥ ६ ॥ पुज्य श्री लालजी गुरु जवाहरलालजी, हीरालाल सुमती युगावती हैरे।भला हीरालालाकान्मन्स॥७॥ .. ॥ इति श्री जैन सुबोध रत्नावली समाप्तम् ॥
SR No.010456
Book TitleJain Subodh Ratnavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Maharaj
PublisherPannalal Jamnalal Ramlal Kimti Haidrabad
Publication Year1913
Total Pages221
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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