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( १९९) स्थानक जाऊं वेगी ऊठने, 'तो में श्राविका सांची ।। जी म्हारी ॥३॥ देव गुरुकी करी ओलखना, धारिया जांची जांची। हिंसा धर्मके संग न जाऊं, तो में श्राविका सांची ॥ जी म्हारी ।। ४ ।। 'हीरालाल' कहे एवी श्राविका, भणी गुणी पुस्तक वांची। विनयवंत गुणवंत कहावे, सोही श्राविका सांची ॥ जी म्हारी ।। ५॥
॥ कान्फंस वर्णन-ठुमरी. ॥ कान्फ्रेंस महारानी सुंदर,क्यारहुकम फरमावतीहरे॥ भला क्या क्या हुकम फरमावती है रे।। कान्फ्रेंस।।टेर। देशदेशके धार्मिक भाया। उनका मेलमिलावतीहरे।।