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(१९६.) फिरे सुर्यको घाम, फिरे चंदाकी छांया। . फिरे ऋतु बिन वृक्ष, फिरे सुख पायां काया ॥, वयवालि वनीता फिरे, फीरे सिंघ अगनी सेडरे। हीरालालकहेएसोपुरूषकाबचनअवलकभीनाफिरे.२ बचन काज श्री हरिश्चंद, राजको छोडि आयो। बचन काज श्रीरामचंद्र, बनवास सिधायो॥ बचन काज श्री लंकापति, राज भवीषणको दीनो। बचन काज श्रीकृष्ण, धावो धात्री खंड कीनो॥ बचन हार मानव बुरो, निपटनी होवे लाज। हीरालाल कहे बचने बंध्या तुरत सुधारे काज ॥३॥ बचने होवे मिलाप, बचने वैर मिटावे। . बचने बधे दोलत, वचने,अमृतरस पावे ॥ .' बचने पामे राज, बचने विद्या बल आवे । वचने शीतल होय, बचने वैराग उपावे ॥ रोग सोग वचने मिटे, गुरु मावित बचने रीजिये।