________________
(१९५) आलोइ निंदीयकर गया खेवापार है ॥ पेंतीस वर्ष लग पाल्यो है संजम भार । बहोतर वर्प सव आयुष्य विचार है ॥ कहे हिरालाल घणो कियो उपगार जाण । शिष्यको भणायो ज्ञान ध्यानका भंडार है ॥ २॥
॥ उपदेशी छप्पय छंद ॥ कियो रूप नरसिंह, द्वारके मुले आयो। महितल मारी लात, नादे अंमर गजायो । धरणी भइ धडधडाट, थरहर धूजण लागा। गढमढ मंदिर कोट, घडडड पडिया भागा ॥ देख अतुल्य वल खलबल्यो, मन विचार इसडोकियो। हीरालाल कहे नृपपझने,सरण सतिकोजायलियो॥१॥ फिरे नंदीको पुर, फिरे सुरो रण चढियो। फिरे मेघ पहल, फिरे गजमदको जटियो ।