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( १७८) कूटुम्ब समान माखा चटा चट काटत है ॥ विद्याधर साधू कहे आवरे नूं दुःखी नर। लालचम पडयो २ हाहा जो करत है ।। हीरालाल कहे मीठा लागा है टिपका मुख । अल्प दिनारो सुख दुःख तो अनंत है ॥ १०॥
॥ नव रस वर्णन ॥
॥ दोहा॥ आगम अनुयोग द्वारमें, नव रस रचीत संसार । वरने जिन आगम वीषे. विरला लहे विचार ॥१॥ वीर श्रृंगार अद्भूत रस, रूद्र त्रिवडा इम जाण। विभत हांस कुर्णा कहि, ऊपशांत नव बखाण॥२॥