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(१५६) टोकर लगा चेतावियो, तेग तोकी तिणवारजी। बहिन उठ आसीस देवे, मैसुणियो श्रृंगार जी॥ चो-सबवातसुणीसुखपायो। बेनपातकाआपबचायो। नटनाटिक करवा आयो । मैतो श्वांग तेरोहीवनायो। मिलत-एक दिन बंकबूल राजके महलों मांही। महाराज चोरीसे चोर नही डरताजी ॥ या ॥२॥ या राणीकी उडगइ नींद चोरको देखा। महाराज रुपमन मोहन गारो जी। कहेललितवचनललनाकोसफलकरआजजमारोजी।। में देवूगा धन माल मान कयो मेरो । महाराज कुंवर को बहू ललचावेजी । नहीं माने कुँवर गुणवंत मात यों कही बतलावेजी॥ शेर-गुप्तपने यो सुण्यो राजा,सभी नारी चरित्रजी। जिनाखोरी नहीं करेचोर,वश कियो अपनो चितजी॥ जवरानी हल्ला किया, पकडा दिया वो चोरजी।