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(१५०) एक दुष्ट नर चड गयो मेहलके मांहीं। महाराज पुत्रिमां छिपकर बेठी जी। देखी रुप अनोपम अतुल्य पकड करले गयो सेंठीजी। यह कियाबचन कठोर विषय की वाणी । महाराज रानीजी दिल घबरानी जी॥ हुइ ॥१॥ यह सील भंग भय राणीजी जाणी। महाराज तबही संथारो कीधोजी । फिर काटी दाँतसे जिभ्या देवगति वासो लीघोजी। यों देखके दिल घबरानी चंदनवाला । महाराज पुत्रिया ढलगइ धरणी जी। फिर किया रुदन विलाप कहां गइ मेरी जननी जी। तसदी धैर्य घर पायक अपने लायो । महाराज नारिया कलह करानी जी ॥ हुइ ॥२१. वो बेचन चला बजार राज रंभा को। महाराज लक्ष सोनये देवारी जी।