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(१४९) लोलुकपहिलीनर्कमें। थारीगतिकर्मकेजोर॥श्रा।८॥ वचनसुणीनेपाछीगइ। तवपधार्याश्रीबृद्धमान ।। गौतमजीनेमोकल्या।सुधारवाश्रावकजीरोध्यान॥श्रा९ मांससंथारेस्वर्गसुधर्मे । चारपल्यआयुष्यरेजोग ॥ श्रावकजीसुखभोगवे।मुक्तिजासीमहाविदेहकेनोग१० गुरुश्रीजवाहरलालजी । ज्ञानध्यानगुणमेंदयाल । हीरालालगायोहर्षस्यूसिंवतउन्नीसोबांसटकेसाल॥११
वासती चंदनवाला चरित्र॥ लावणी-चाल दूणकी ॥ या चंपानगरी दधीवाहन नृप पूत्री। महाराज रुपमैं ज्यों इन्द्राणीजी। हुइमहावीरजीकीआपशिष्यणीप्रथमवखानीजी॥टेर।। यो कोसंबी नगरीको राजा चडकर आयो । महाराज भूपके हुइ लडाइजी। तब दधीवाहन नृप हार गयो जब लूट मचाइजी ।।