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(१४३ ) छूट-यों केवल ज्ञान पद परमार्थ को पासी । फिर जन्म मरण रोग सोगमे कभी न आसी। हीरालाल कहे गुणवंत तणा गुण गासी।
तास घर सदा ऋद्धि सिद्धी मङ्गल वरतासी। मिलत-हवा केइ पर उपकारीजी ॥ कियो॥४॥
॥कोणिक चेडाका युद्ध-लावणी चाल दूणकी॥ यह अमरपति नरपति खगपति राया महाराज सबी लालचको ध्याताजी परम शांत उपशांत हुवा फिर मुक्तिपाताजी ।टेर। या चंपानगरी वसे लोक धनवंता महाराज कोणिक नृप राज करंदाजी यह वेहल कुँवरको हकहार हाथी मोजयरदाजी ॥
यह जलक्रिडा करणको गंगा जलमांही। __ महाराज वेहल कँवर जव जावेजी।