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________________ ( १३१ ) गुप्त रूप रही उपर सेती । मुद्रिका ताम गिरावे || देखी मुद्रिका सीता पतीकी । हर्प हिये न समावे॥ ४ चिन्ता जाणीने प्रगट हवा | चरणे सीश नमावे || रामलक्ष्मणदोनोहे घणा सुखमें। तुम क्यों आर्तध्यावे ॥१५ कहां लक्ष्मण कहां राम विराजे । कहां पर स्थान लहावे ।। सुग्रिव नृपके काज शुधारी । केकंदा संग मिलावे ॥ ५६ देवो सेलाणी सांची हमको । जलदी वलतो जावे ॥ हीरालाल कहेहोवे नरारा । कार्य पार लगावे ॥ प ७॥ ॥ रामजी की जीत ॥ लावणी-चाल दूणकी ॥ यह अतुल वलीवंत जक्तके मांही | महाराज फते जंग हुवा परवानाजी | सब लिया राज त्रिखन्ड आजघर रंग वधानाजी ॥टेर ॥ यह राजा रावण परलोक हुवा परजामें । महाराज राक्षस मिल भागण लागाजी ।
SR No.010456
Book TitleJain Subodh Ratnavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Maharaj
PublisherPannalal Jamnalal Ramlal Kimti Haidrabad
Publication Year1913
Total Pages221
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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