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(१२४) यों सुना हाल सीताका । भभीषण राजा ॥ इनकी तो बिगडी बुद्ध । सुधारुं काजा ॥ आयो राजा रावणके पास । अर्ज करी ताजा ॥ नहीं दूं सीता इम बोले । छोडकर लाजा॥ वो बनवासी दो जना। फिरत वनवनको ॥ मेली४॥ रावणको गफलत जान । करी होशियारी॥ कौन जाने होनहार । बात कियों गढ त्यारी॥ यह दारु गोला नार। औरभी भारी ॥ सब कोट कोटपर । ओट लगादी सारी॥ हीरालाल कहे योभाइका करण भलपनका॥मेली५॥
भभीषणकीरावणको हितशिक्षा॥लावणी-चाल दूणकी यों अर्ज करे रावणसे भभिषण भाई । महाराज काम विचारके करनाजी ॥ नहीं लगे दुशमनका दाव ।