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________________ (१२२) हलकर तो करे आत्मा । पक्षी पीड निवार ॥ लक्ष्मण पासेपहोंचियासरे । रामचन्द्रतिणवाररे अ३॥ लक्ष्मण कहे क्यों आविया सरे। कबमें करी अवाज॥ बनमें मेली एकली सरे । कीधो काम अकाज ॥ फिरजावोउतावलासरे।सीतांकनेमहाराजरे ॥॥४॥ सीता जोइ पाइ नहीं सरे । जिहां गयाथा बेठाय ॥ फिरतां तिण बनरे विषे सरे। पक्षी पडियो पाय ।। दयादेखरामचन्द्रजीसरे।श्रीहाथमैलियोउठायरेअ५ सरणो श्री नवकारको सरे । संभलायो तिण वार।। प्राण मुक्त पक्षी जा उपनोसरे । चौथा कल्पमझार॥ कहेहीरालालनवकारंमंत्रसाहुवाघणाउद्धाररे॥॥६॥ ॥सीताजीसे भभीषणकाभाषणलावणी-छोटीकडीमें अपहरी सीता बनवास । राजा रावणको । मेली लंकागढ के बाग । मोज करी मनको ॥ टेर।
SR No.010456
Book TitleJain Subodh Ratnavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Maharaj
PublisherPannalal Jamnalal Ramlal Kimti Haidrabad
Publication Year1913
Total Pages221
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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