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( ११२) दे गया सराप जो दुःखदाई। हूं बेठी रही समता लाई ॥ सुनो ॥ १॥ कंथ कहे तूं सुन प्यारी । बात करी अविचारी ॥ भावी बल कोन देवे टारी। सुख पाया जो नरनारी ॥ सुनो ॥ २ ॥ कंश मनमें घणो पस्तानो। निस्तारोहमारेकरवानो॥ सभा करी पण्डित आनो। मिल गयो बातको सब टानो ॥ सुनो ॥३॥ पण्डितनेकहीसमझानी। मुनीवरनेजोकहीथीवानी।। वासब मिल गई मिलवानी। पुन्यवंत गिरिधारी जन्में आनी ॥ सुनो॥ ४ ॥ हीरालाल कहे सुनलीजो। विन विचार्यो मतकीजो।। संतोष सभी जीवको दीजो। समता रस प्याला पीजो ॥ सुनो ॥ ५ ॥