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(१०५) प्रभूके पाम सिधावोजी ॥ यां ॥ २ ॥ यह क्रोध मान जो चारों मोक्ष अटकावे॥महाराज। ऐसी या सीख सुनाइजी ।। झट उतर गयो अभिमान । दिल की थी गुमगईजी॥ अब जावू जिनेन्द्र के पास मुनियाँको बंदमहागज।। पांच जब एक उठायोजी ॥ नब ज्योति अधिक उद्योन। ज्ञान केवल प्रगटायोजी।। यह वाहृयल केवली एम कवाया ॥ महागन ॥ सभीमिल महल गावोजी ॥ यां ॥ ३ ॥ यह कियादेव मोहत्सव दुंद भी बाजी ।। महाराज ।। आया समवसरणके माहीजी ॥ श्री आदीनाथ महागज । सभामें दिया फरमाईजी।। यों लक्ष बउरासी पूर्व आउखो मोटो । महागज ।। अटल अविचल पद पायाजी ॥ श्री रत्न चन्दजी महाराजा शिष्यको ज्ञान भणायाजी