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________________ जैन पूजा पाठ सप्रह ८३ स्वयंभू सतोत्र भाषा राजविष जुगलनि सुख कियो, राज त्याग भवि शिव पद लियो। स्वयंबोध स्वयंभू भगवान, बंदौं आदिनाथ गुणखान ॥१॥ इन्द्र क्षीरसागर जल लाय, मेरु न्हवाये गाय बजाय । मदन-विनाशक सुख करतार, वंदौं अजित अजित पदकार ॥२॥ शुक्लध्यान करि करम विनाशि, घाति अघाति सकल दुखराशि । लह्यो मुकतिपद सुख अविकार, पदौं सम्भव भव दुखटार ।। ३ ।। माता पच्छिम रयन मंझार, सुपने सोलह देखे सार। भूप पूछि फल सुनि हरपाय, बदौं अभिनन्दन मनलाय ॥ ४ ॥ सब कुवाद वादी सरदार, जीते स्यादवाद-धुनि धार । जैन-धरम-परकाशक स्वाम, सुमतिदेव-पद करहु प्रणाम ॥ ५ ॥ गर्भ अगाऊ धनपति आय, करी नगर-शोभा अधिकाय । बरसे रतन पंचदश मास, नमों पदमप्रभु सुखकी रास ॥६॥ इन्द्र फनिन्द्र नरिंद्र त्रिकाल, वाणी सुनि सुनि होहिं खुस्याल। द्वादश सभा ज्ञान-दातार, नमों सुपारसनाथ निहार ॥ ७॥ मुगुन छियालिस हैं तुम माहि, दोष अठारह कोऊ नाहि । मोह-महातम-नाशक दीप, नमों चन्द्रप्रभ राख समीप ॥८॥ द्वादश विधि तप करम विनाश, तेरह भेद रचित परकाश । निज अनिच्छ भवि इच्छक दान, वदौं पुहुपदत मन आन ||811 भवि-सुखदाय सुरगत आय. दश विधि धरम कह्यो जिनराय ।
SR No.010455
Book TitleJain Pooja Path Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages481
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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