________________
जेन पूजा पाठ सग्रह
कठिन बचन लतिबोल, पर-निन्दा अरु झूठ तज । सांच जवाहर खोल, सतवादी जगमें सुखी ॥३॥ उत्तम सत्य-चरत पालीजै, पर-विश्वासघात नहिं कीजै । सांचे झूठे मानुष देखो, आपन पूत स्वपास न पेखो। पेखो विहायत पुरुष सांचको, दरव सब दीजिये । मुनिराज - श्रावककी प्रतिष्ठा, सांचगुन लख लीजिये ॥ ऊंचे सिंहासन पैठ बसु नृप, घरमका भूपति भया । वस झूठ सेती नरक पहुँचा, सुरगों नारद गया ।। ४ ।। ॐ ही उत्तम सत्य धर्माशाय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा। धरि हिरदै सन्तोष, करहु तपस्या देहसों । शौच सदा निरदोष, धरम बड़ो संसार में ॥५॥ उत्तम शौच सर्व जग जानो, लोभ पापको बाप बखानो। आशा-पाश महा दुखदानी, सुख पाचै सन्तोषी प्रानी ॥ प्रानी सदा शुचि शील जप तप, ज्ञानध्यान प्रभावत । नित गंग-जमुन समुद्र न्हाये, अशुचि-दोष सुभावते ।। ऊपर अमल मल भयो भीतर, कौन विधि घट शुचि कहै ।। बहु देह मैली सुगुन - थैली, शौच-गुन साधु लहै || ॐ हीं उतम शौच धर्माशाय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा । काय छहों प्रतिपाल, पंचेन्द्री सन वश करो। संजम-रतन संभाल, विषयं चोर बहु फिरत हैं ॥६॥