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न पूजा पाठ संग्रह
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नेवज विविध निहार, उत्तम पट-रस- संयुगत ॥ भव०
ॐ ह्रीं उत्तमक्षमादिगण धमाय नैवय निर्वपामीति स्वाहा ॥ ५ ॥
वाति कपूर सुधार, दीपक जोति-सुहावनी ॥ भव०
ॐ ही उत्तमक्षमा दिशलक्षण धर्माय दीपं निर्वपामीति स्वाहा ॥ ६ ॥
अगर धूप विस्तार, फैले सर्व सुगन्धता ॥ भव०
ॐ ही उत्तमक्षमा दिवनलक्षण धर्माय धूप निर्वपामीति स्वाहा ॥ ७ ॥
फलकी जाति अपार, प्राण नयन मनमोहने ॥ भव०
ॐ ही उत्तमक्षमा दशलक्षण धर्माय फल निर्वपामीति स्वाहा ॥ ८ ॥
आठों दरव संवार, 'द्यानत' अधिक उछाहसों ॥ भव०
ही उनमक्षम दिदर लक्षण धर्नाय अपं निर्वपामीति स्वाहा ॥ ९ ॥
अंग पूजा
सोरठा ।
वीडें दुष्ट अनेक, बांध मार बहुविधि करें । धरिये छिमा विवेक, कोप न कीजें पीतमा ॥१॥ चौपाई मिश्रित गीता छन्द ।
उत्तम छिमा गहो रे भाई, इह भव जस, पर-भव सुखदाई । गाली सुनि मन बंद न आनो, कहि है अयानो वस्तु छीन, वर निकारै तन विदारे,
गुनको औगुन बांध मार वैर जोन
कहै अयानो ॥ बहुविधि करै । तहां धरै ॥