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________________ मन पूरा पाठ या - सिद्ध पूजा ऊनांधोरयुतं सबिंदु सपरं नहास्यरावेष्टितं वर्गापूरित-दिग्गतांचज-दलं नलंधि-तच्चान्वितं । अन्तःपन - वटंबनाहतयुतं होकार - संवेष्टितं देवं पायति यः न मुक्ति-सुभगो बैगभ-कंठीरवः । *ainme: rkcEETIR मीन् । Pौशिक्षuri ar!ि : ineera :RATRA नि मर गय यपढ़ । निरस्त कर्म-संबंधं, सूक्ष्म निन्यं निरामयम् । चन्देऽहं परमात्मानममूर्तमनुपद्रवम् ॥१॥ (मिस यम म्यापनम् ) द्रव्याप्टफ। सिदी निवानमनुगं परमात्मगम्यं हान्यादि-भाव-रहितं भव-धीत-कायं। रेवापगा-पर-सरो-यमुनांद्रयानां, नीरयंजकलगगर-सिद्ध-चक्रं ॥२॥ ही निकाभिनय मिस मेष्टिन समारामाणिनागनाय जला। आनंद-फंद-जनकंघन-कम-मुक्त, सम्यक्त्व-शर्म-गरिमंजननार्ति-वीत। सौरम्प-वामित-भुवं हरि-चंदनानां, गंधर्यज परिमलबर-सिद्धचकम् ॥२॥ ही सिमाभिपतये मिपग्मेटिने समारनापपिनागनाय चन्दनम् ।। मर्वारगाहन-गुणं सुसमाधि-निष्ठं, सिद्ध स्वरूप-निपुणं कमलं विशालं। मौगंध्य-शालि-बनशालि-बराक्षतानांपंजर्य शशिनिभरसिद्धचक्रम्॥३ ही मिलसमाधिरन गिझपरमेष्टिने अक्षयपदप्राप्तये अक्षनान् ।
SR No.010455
Book TitleJain Pooja Path Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages481
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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