SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 453
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रे मराठ ४२७ जवे तन-भोग जगत- उदास, घरे तव सवर - निर्जर - आस । करे जब फर्म फक विनाग, लहे तब मोक्ष महासुखराश ॥ तथा यह लोक नरापुन नित्त, विलोकिय ते पट द्रव्य-विचित्त । सुजातम-जानन-बोध-विहोन, घरे दिन तत्त्व-प्रतोत प्रवीन ॥ जिनागम-शान मजम भाय, सर्व-निज ज्ञान विना विसराव | दुई क्षेष शुकाल, सुभाव सर्वे जिहतें शिव हाल ॥ ● नयोजय जोग सुन्य वद्याय कहो किमि दीजिय ताहि गँवाय । विचारत व लवकांतिक नाय, नमे पद-पकज पुष्प चढाय ॥ को प्रभु धन्य कियो सुविचार, प्रयोधि सु येम कियो जु विहार । नवेग धर्म तनो हरि नाय, रच्यो विविका चढ़ि आप जिनाय ॥ घरे पायन-बोध, दियो उपदेश भव्य संबोध | लियो फिर मोल महाग-रात्र, नमें नित भक्त सोई सुख आश ॥ बता निन यामव-वदत, पाप-निकदत, वासुपूज्य व्रत-ब्रह्म-पती । नव सकट दिन आनंद महित, जे जे जे जेवत जती ॥ *श्री श्री पानीति स्वाहा । वानुपूज- पद सार, जजो दरवविधि भावस । ना पायें सुखमार, गुक्ति मुक्ति को जो परम || mais afgratafa fermila ] 144140cm
SR No.010455
Book TitleJain Pooja Path Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages481
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy