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जैन पूजा पाठ साह
सित भादव चौदशि लीनो, निरवार सुथान प्रवीनों। पुर चपा थानकसेती, हम पूजत निज - हित हेती ॥ ५ ॥
ॐ ही घी भाद्रपदशुक्लचतुर्दश्या मोसमगलप्राप्ताय श्री वासुपूज्यजिनेन्द्राय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा ।
जयमाला
दोहा-चपापुर मे पचवर, कल्याणक तुम पाय । सत्तर धनु तन शोभनो, जै जै जै जिनराय ॥ १ ॥
छन्द मोतियादाम वर्ण १२ महासुख-सागर आगर ज्ञान, अनत-सुखामृत-भुक्त महान् । महावल-मडित खडत-काम, रमा-शिव-संग सदा विसराम ॥ सुरिंद फनिंद खगिद नरिंद, मुनिंद जजे नित पादरविद । प्रभू तुव अन्तर-भाव विराग, सुबालहते व्रत-शीलसो राग । कियो नहिं राज उदास-सरूप, सुभावन भावत आतम-रूप । अनित्य शरीर प्रपच समस्त, चिदातम नित्य सुखाश्रित वस्त ॥ अशन नही कोउ शर्न सहाय, जहांजिय भोगत कर्म-विपाय । निजातमके परमेसुर शन, नहीं इनके विम आपद-हर्न । जगत्त जथा जलबुदबुद येव, सदा जिय एक लहै फलमेव । अनेक-प्रकार धरी यह देह, भ्रमें भव-कानन आन न नेह ।। अपावन सात कुधात भरीय, चिदातम शुद्ध -सुभाव धरोय । धरै इनसो जब नेह तबेव, सुआवत कर्म तबे वसुभेव ॥