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रेन पूजा पाठ सत्रः
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प्रजा जु सकल इकट्ठी भई, तिलकमती बुलवाय सु लई । नेत्र मुदि पद धोयत जाय, यह भी नही नही पति आव ।। जब नृप के चरणाम्बुज धोय, कहती भई यही पति होय । राजा हंसि इम कहतो भयो, इनि हम तस्कर कर दियो। तिलकगती पुनि ऐसे कही, नृप हो वा अन्य होई सही। लोक हसन लागे निहि वार, भूप मने कीन्हे ततकार ॥ पृधा तास्य लोकां मति करो, में ही पति निश्चय मन घरो। लोक व कसे इह वणी, आदि अन्तलो भूपति भणी। तपही तोक सकल दमकती, कन्या धन्य भूप पति लयो। पूरब इन व्रत कीन्हू सार, ताको फल इह फल्यो अपार ॥ भोजन अन्तर कर उत्साह, सेठ कियो सब देखत व्याह । ताक पटराणी नृप करी, भूपति मन में साता धरी ॥ एक नमै पतियुत मों नार, गई सु जिनके गेह, मझार । वीतराग मुख देख्यो सार, पुन्य उपायो सुखदातार ॥ सभा विप अतिसागर सुली, बठे जान निधी बहुगुनी। तिनको प्रणाम परम सुख पाय, पूछे मुनिवर सों हमि राय।। पूरव भर मेरी पट नार, कहा सुगर कीन्ह विधि धार । जाकर रूपवती इह मई, अधिक सम्पदा शुभ करि लई ।। योगी पुरव सब विरतन्त, मुनि निन्दादिक सर्वे कहन्त । अरु सुगन्ध दशमी व्रत सार सो इनि कीन्हूं सुखदातार ॥ ताको फल इह नाणं सही, ऐसे मुनि श्रुति सागर कही। तरही आयो एक चिमान, जिन श्रुत गुरु वन्दे तजि मान॥ मुनि नमस्कार करि सार, फेर तहां नृप देवि निहार । हिन्मती के पांवा परयो, जरु ऐसे सु वचन उम्धरयो ।