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________________ कोटि पंच अरु लाख पचाम, ते वढी धरि परम हुलास ।। रेवानढी सिद्धवर कूट, पश्चिम दिशा देह जहँ छूट | द्वै चक्री दश कामकुमार, ऊठकोडि वंदी भव पार ।। वडवानी वडनयर सुचंग, दनिण दिशि गिरि चूल उतंग ! इंद्रजीत अरु कुभ जु कर्ण, ते बंदो भव-सायर-नर्ण ॥ सुवरणभद्र आदि मुनि चार, पावागिरि-बर-शिखरमझार । चेलना-नदी-तीरके पास, मुक्ति गये वंदौ नित तास ॥ फलहोडी वड़गाम अनूप, पश्चिम दिशा द्रोणगिरि रूप । गुरुदत्तादि मुनीसुर जहाँ, मुक्ति गये दो नित तहों। वाल महावाल मुनि दोय, नागकुमार मिले त्रय होय । श्रीअष्टापद मुक्ति मॅझार, ते बंदी नित सुरत सॅभार ।। अचलापुरकी दिश ईसान, तहाँ भेदगिरि नाम प्रधान । साढे तीन कोडि मुनिराय, तिनके चरण नमूचित लाय || वंसस्थल वनके ढिग होय, पश्चिम दिशा कुंथुगिरि सोय । कुलभूषण दिशिभूषण नाम, तिनके चरणनि करूँ प्रणाम || जसरथ राजाके सुत कहे, देश कलिंग पॉचसौ लहे । कोटिशिला मुनि कोटि प्रमान, चंदन करूं जोर जुग पान ।। समवसरण श्रीपार्श्व-जिनंद, रेसिंदीगिरि नयनानंद । वरदत्तादि पंच ऋषिराज, ते बंदौ नित धरम-जिहाज ॥ मथुरापुर पवित्र उद्यान जम्बू स्वामी जी निरवान । चरम केवली पचमकाल, ते वदो नित दीन दयाल ॥ तीन लोकके तीरथ जहाँ, नित प्रति बंदन कीजै तहाँ। मन-वच-कायसहित सिर नाय, वंदन करहि भविक गुण गाय ।। संवत सतरहसौ इक्ताल, आश्विन सुदि दशमी सुविशाल । 'भैया' बंदन करहि त्रिकाल, जय निर्वाणकाड गुणमाल ||
SR No.010455
Book TitleJain Pooja Path Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages481
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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