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निर्वाणकाण्ड भाषा दोहा- चीतगग बंदी सटा. भावमहित सिरनाय ।
कहें कांड निर्याणकी, भाषा सुगम बनाय ।। अष्टापट आदीवर स्वामि, वासुपूज्य चंपापुरि नामि ।। नेमिनाथ स्वामी गिरनार, चंदो भाव-भगति उर धार ॥ चरम नार्थर चरम-शरीर, पावापुरि स्वामी महावीर । शिसम्ममेट जिनेसुर बीस, भावसहित बंदी निश-दीस ॥ वन्दत्तराय क इंद मुनिंद, सायरदत्त आदि गुणवृंद । नगर तारवर मुनि उठकोडि, बंदी भावसहित कर जोड़ि | श्रीगिरनार शिखर विस्यात, कोडि बहत्तर अरु सौ सात । संप्रदम्न उमर द्वै भाय, अनिरुध आदि नमूतमुपाय ।। गमचंद्रक नुत है बीर. लाटनरिंद आदि गुणधीर । पाच कोटि मुनि मुक्ति मझार, पाचागिरि वटी निरधार ॥ पांटव तीन द्रविड-राजान, आट कोडि मुनि मुकति पयान । श्रीशत्रु जयगिग्केि शीन, भावमहित बंदी निश-दीस ।। जे बलभद्र, मुकतिम गये, आठ कोडि मुनि औरह भये । श्रीगजपंथ शिखर सुनिशाल, तिनके चरण नमृतिहुँ काल । राम हणू सुग्रीव मुडील, गव गवाख्य नील महानील । कोटि निन्याणव मुक्ति पयान, तुंगीगिरि वंटी धरि ध्यान ॥ नंग अनंग कुमार मुजान, पॉच कोडि अरु अर्धे प्रमान । मुक्ति गये सोनागिरि-शीश, ते बंदी त्रिभुवनपति ईस ॥' रावणक सुत आदिकुमार, मुक्ति गये रेवा-तट सार ।