________________
प्रभु सब जग के बिना हेतु बांधव उपकारी । निरावरण सर्वज्ञ शक्ति जिनराज तिहारी ॥ भक्ति रचित ममचित्त सेज नित वास करोगे। मेरे दुःख सन्ताप देख किम धीर धरोगे ॥ ५ ॥ भववनमें चिरकाल भ्रम्यो कछु कहिय न जाई । तुम थुति कथा पियूषवापिका भागन पाई। शशि तुषार धन सार हार शीतल नहिं जा सम। करत न्हौन तामाहिं क्यों न भवताप बुझे मम ॥ ६ ॥ श्रीविहार परिवाह होत शुचि रूप सकल जग । कमलकनक आभाव सुरभि श्रीवास धरत एग ॥ मेरो मन सवंग परस प्रभु को सुख पावै । अब लोकौन कल्याणजोनदिन दिन ढिग आवै ॥ ७॥ भवतज सुखपद बसे काममद सुभट संहारे । जो तुमको निरखन्त सदा प्रियदास तिहारे ॥ तुम वचनामृतपान भक्ति अंजुलिसों पी। तिन्हें भयानक रोगरिपु कैसे छीवै ॥ ८ ॥ मानथम्भ पाषाण आन पाषाण पटन्तर । ऐसे और अनेक रतन दीखें जग अन्तर ।। देखत दृष्टिप्रमाण नाममद तुरत मिटावे । जो तुम निकट न होय शक्ति यह क्योंकर पावै ।। ६ ॥