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न पूजा पाठ सह
एकीभाव स्तोत्र भाषा दोहा-वादिराज सुनिराजके, चरणकमल चितलाय ।
भाषा एकीभाष की, करू स्वपरसुखदाय ॥१॥
पाल-"अहो जगत गुरुदेव सुनियो अर्ज हमारी" जो अति एकीभार भयो सानो अनिवारी।। लो सुरु कर्म प्रबन्ध करत भा भव दुःख भारी॥ ताहि तिहारी भक्ति जगतरवि जो निरवारै । तो अब और कलेश कौन लो नाहि विदारै ॥ १॥ तुम जिल जोतिस्वरूप दुरित अंधियारि निवारी। सो गणेश गुरु कहें तत्व विद्याधन धारी। मेरे चितघर माहि वलौ तेजोमय यावत । पापतिलिर अवकाश तहां तो क्योंकरि पावत ॥ २॥ आनन्द ऑसूबदन धोय तुमलों चित लाने । गदगद सुरतों सुघश मन्त्र पढ़ि पूजा ठाने । ताके बहुविधि व्याधि व्याल चिरकाल निवासी । भाजै थाना छोड़ देह वनइ के वासी ॥३॥ दिविसे आवनहार भये भविभाग उदयबल । पहले ही सुर आय कनकमय कीय महीतल ।। मनगृह ध्यान दुवार आय निवसो जगनामी । जो सुवरण तन करो कौल यह अचरज स्वामी ॥४॥