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________________ ३५६ ਖੈਰ पूजा पाठ सप्रह पद्धडी छन्द । प्रभु तुम शरीर दुति रतन जेम, परतापपुञ्ज जिम शुद्ध हेम । अतिधवल सुजस रूपा समान, तिनके गढ़ तीन विराजमान ॥ सेवहिं सुरेन्द्र कर नमत भाल, तिन शीश मुकुट तज देहिं भाल । तुम चरणलगत लहलहैं प्रीति, नहिं रमहि और जन सुमन रीति ॥ प्रभु भोगविमुख तन गरमदाह, जन पार करत भवजल निवाह | ज्यों माटी कलश सुपक्क होय, ले भार अधोमुख तिरहि तोय || तुम महाराज निरधन निराश, तज विभव- विभव सब जग प्रकाश । अक्षर स्वभाव सुलिखै न कोय, महिमा भगवन्त अनन्त सोय || कर कोप कमठ निज वैर देख, तिन करो धूलि वर्षा विशेष । प्रभु तुम छाया नहि भई हीन, सो भयो पापि लंपट मलीन ॥ गरजन्त घोर घन अन्धकार, चमकन्त विज्जु जल मुसलधार । चरषन्त कमठ धर ध्यान रुद्र, दुस्तर करन्त निज भव समुद्र || वास्तु छन्द | मेघमाली मेघमाली आप बल फोरि 1 भेजे तुरत पिशाचगण, नाथ पास उपसर्ग कारण । अग्नि जालू झलकन्त मुख, धुनि करत जिमि मत्तवारण ॥ कालरूप विकराल तन, मुण्डमाल हित कण्ठ | चौपाई | जे तुम चरणकमल तिहुँकाल, सेवहिं तज माया जजाल । भाव भगतिमन हरष अपार, धन्य-धन्य जग तिन अवतार || भवसागर में फिरत अजान, मैं तुच सुजस सुन्यो नहिं काने । जो प्रभु नाम मन्त्र मन धरै, तास विपति भुजगम ड 18
SR No.010455
Book TitleJain Pooja Path Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages481
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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