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________________ खेन पूजा पाठ सप्रह जय पुष्पदन्त जग मांहि सार, पुष्पकको मात्यो अति सुमार। करि धर्मभाव जगमें प्रकाश, हरि पाप तिमिर दियो मुक्तवास ॥शा जय शीतलजिन भक्हर प्रवीन, हरि पाप ताप जग सुखी कीन। श्रेयांस कियो जग को फल्यान, दे धर्म दुःखित तारे सुजान ॥६॥ जय वासुपूज्य जिन नमों तोहि, सुर नर मुनि पूजत गर्व खोहि । जय विमल विमल गुण लीन मेय, मवि करे आपसम सुगुण देय ॥णा | जय अनन्तनाथ करि अनन्तवीर्य, हरि घातिकर्म धरि नन्त धीर्य । उपजायो केवलज्ञान भान, प्रभु लखे चराचर सब सु जान ||८|| दोहा-यह चौदह जिनजगत में, मंगल करन प्रवीन। पाप हरण बहु सुख करन, सेवक सुखमय कीन ॥ ॐ ही श्रीवृषभायनतनाथपर्यंतचतुर्दशजिनेन्द्रभ्योऽध्य० । __ अनन्त चतुर्दशी मन्त्र एकादशी- ह्रीं अई इस अनन्त फेवलिने नमः स्वाहा।। द्वादशी-ॐ ह्रीं क्ष्वी ह्रीं ह्रीं ह्रौ इंस• अमृत वाहने नमः स्वाहा। त्रयोदशी-ॐ ह्रीं अनन्तनाथ तीर्थङ्कराय हो ही ह. हो असि आउसा मम सर्व शान्ति कुरु-कुरु स्वाहा। चतुर्दशी-ॐ ह्रीं अई हसः। अनन्त केवलि भगवान अनन्त दान लाभ भोगोपभोग वीर्याभिवृद्धि कुरु-कुरु स्वाहा। अनन्त बदलने का मन्त्र ॐ ह्रीं अह हसः अनन्त केवलि भगवान सर्व कर्म विमुक्ताय अनन्तनाथ तीर्थङ्कराय अनन्त सुख प्राप्ताय पूर्व सूत्र बन्धन मोचन करोमि स्वाहा । अनन्त वांधने का मन्त्र ॐ ह्रीं अनन्त तीर्थङ्कराय सर्व शान्ति कुरु-कुरु सूत्र बन्धन करोमि स्वाहा। यज्ञोपवीत मन्त्र ॐ ह्रीं नम परमशान्ताय परमशान्तिकराय पवित्रीकराह रमत्रय स्वरूप यज्ञोपवीत दधामि मम मात्रं पवित्र भवतु अहं नमः स्वाहा।
SR No.010455
Book TitleJain Pooja Path Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages481
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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