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लाडू कलाकन्द सेव घेवर और मोतीचूर ले। गूंजा सु पेड़ा क्षीर व्यञ्जन थाल में भरपूर ले ॥श्रीवृष०
ही श्रीगायनन्तनाथपयन्तयतुदराजिनेन्द्रेभ्यो धुधारोगविनाशनाय नैवेद्य ।। ले रत्नजड़ित सु आरती तामांहि दीप संजोयके । जिनराज तमपद आरतीकरतिमिर मिथ्याखोय॥श्रीवष० ॐ ही धीयपमायनन्तनाथपर्यन्तचतुर्दगजिनेन्द्रेभ्यो मोहान्धकारविनाशनाय दीप० । चन्दन अगरतर सिलारस कपुरकी करि धूपको। - तागंधतेमधु चकित सो खेऊनिकट जिनभूपको॥श्रीवृषभ०
ही धीमुफ्भावनन्तनाथपर्यन्तयनुदंशजिनेन्द्र भ्यो अष्टकर्मविध्यसनाय धूप० । नारंगि केला दाख दाडिम वीजपूर मंगायके । पुनि आन ओरबदाम खारिक कनक थारभरायके॥श्रीवृष० ॐही श्रीवृषभावनन्तनाथपर्यन्तचतुर्दशजिनेन्द्र भ्यो मोक्षफलप्राप्तये फलः । जल सुचन्दन अखत पुष्प सुगन्धघहुविधि लावक । नैवेद्य दीपसुधूप फल इनको जु अर्घ वनायके ॥श्रीवृषभ० ही धीम्यभायनन्तनाथपर्यनाचतुदशजिनेन्द्र भ्यो अनर्यपदप्राप्तयेऽयं ।
जयमाला पद्धडी छन्द। जय पमनाथ धूप को प्रकाश, भविजन को वारे पाप नाश । नय अजितनाथ जीते सु कर्म, ले क्षमा खड्ग भेदे जु मर्म ॥१॥ जय सम्भव जग सुखके निधान, जग सुख करता तुम दियो ज्ञान । जय अभिनन्दन पद धरो ध्यान, तासों प्रगटे शुभ ज्ञान भान ||२|| जय सुमति सुमतिके देन हार, जासों उतरे भव उदधि पार । जय पद्म पद्म पदकमल तोहि, भविजन अति सेवे मगन होहिं ॥३॥ जय जय सुपार्श्व तुम नमत पाय, क्षय होत पाप बहु पुण्य थाय। जय चन्द्रप्रभ शशिकोट भान, जगका मिथ्यातम हरो जान ||
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