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जन पूजा
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अन्तरायकर्मनाशक सिद्ध जयमाला ।
दोहा
भूप दिलावे दर्व को, भण्डारी दे नाहिं । होन देय नहि सम्पदा, अन्तराय जगमाहिं ॥१॥ चौपाई। छती वस्तु दे मकै न प्राणी, दान अन्तराय विधि जानी 1 उद्यम करें न होय कमाई, लाभ अन्तराय दुःखदाई ॥२॥ भोजन त्यार सान नहिं पावै, भोग अन्तराय जब आवे । पट भूषण है पहिरत नाहीं, उपभोग अन्तराय की छाही ॥३॥ तन वर पोखे बल नहि होई, नीर्य अन्तराय है सांई । इह विधि अन्तराय विवहारी, निश्चय बात सुनो मति धारी ||४|| मिध्याभाव त्याग सो दानं, समताभाव लाभ परधानं । आतमीक सुख भोग सजोगं, अनुभाऽभ्याम मदा उपभोग ||५|| भ्यान ठानके कर्म विनाम, सो धीरज निज भाव प्रकामै । पांचों भाव जहाँ नहि लहिये, निश्च अन्तराय मो कहिये ॥६॥ दोहा
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अन्तराय पांचों हत, प्रगट्यो सुवल अनन्त । यात सिद्ध नमी सदा, ज्यों पाऊँ भव अन्त ॥१॥ श्री पनी द्वाणं पिष्टभ्यो अन्तराय कर्मविनाशनाय अध्यं । आठ कर्मनाशक सिद्ध जयमाला । सोरठा
आठ करन को नाश, आठों गुण परगट भये । सिद्ध सदा सुखरास, करों आरती भावसों ॥१॥
चौपाई। ज्ञानावरणी कर्म विनाश, लोकालोक ज्ञान परकाशै । दस्शन आवरणी छय कीनी, दुःस सुगुण परजय लसि लीनी ॥२॥