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________________ नग पूजा 10 मारै मरे रहे आधारं, दीसै अर लोकनि मे मारं । वादर जीया चहूं पसरंतं, सूक्ष्म जीव इन ते विपरीत IIT शुभ के उ? होय शुभ काया, अशुभ उदे तन अशुभ बताया। शुभग उद भाग का पूरा, अशुभ उठें जभाग हजरा ॥१०॥ सुस्वर उदय कोकिला वानी, दुस्वर गदभ-ध्वनि सम जानी । आदर ते बहु आदर पावे, उदय अनादर ते न सुहावै ॥११॥ जसके उदय सुजस जग माही,अजस उदय अपजस जग माही। थान प्रमान दुविधि निर्मानं, तीर्थङ्कर है पुण्य प्रधानं ॥१२॥ व्यालीस और तिरानवै, तथा एकसौ तीन । द्यानत सो प्रकृति हरी, सिद्ध अमूरति लीन ॥ ॐ ह्रीं श्री णमो सिद्धाण सिद्धपरमेष्ठिभ्यो नामर्मविनाशनाय अर्य० । गोत्रकमेनाशक सिद्ध जयमाला । ज्यों कुम्हार छोटो बड़ौं, भांडी घड़ा जनेय । गोत्र-कर्म त्योंजीवको, ऊँच नीच कुल देय ॥१॥ चौपाई। नीच गोत्र पशु नर्क निहारं, ऊंच गोत्र सब देव कुमार । मनुप मांहि दो गोत्र वखाने, नीच गोत्र सब शूद्र प्रवान ॥ २ ॥ ब्राह्मण क्षत्री वैश्य मझारं, मद्य मांस जो करे अहारं ।। जो पंचनितें वाहिर होई, नीच गोत्र कहिये नर सोई ॥ ३ ॥ परगुणको औगुण करि भाख, निज औगुणको गुण अभिलाष । परको निन्दै आप बड़ाई, वांधै नीच गोत्र दु.खदाई ॥ ४ ॥ नीच गोत्रको मुनिव्रत नाही, क्योंकर जाय मुकतिके माही ।। नीच काज तज ऊंच सम्हार, दया धरम कर आतम तारे ॥५॥ सोरठा ऊंच नीच दो गोत्र, नाश अगुरुलघु गुण भये । द्यानत आतम जोत, सिद्ध शुद्ध वंदौं सदा।। रही श्री णमो सिद्धार्ग सिद्धपरमेष्ठिभ्यो गोत्रकर्मविनाशनाय अय० ।
SR No.010455
Book TitleJain Pooja Path Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages481
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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