________________
जन पूजा पाठ सप्रह
क्रोध मान माया अर लोभ, चारौ चार-चार विधि शोभं ।। ४ ॥ अनन्तानुबन्धी चौकड़िया, जिनने निरमल समकित हरिया। अप्रत्याख्यानी चऊ भाखै, श्रावक व्रत विधि वश कर राखे ॥ ५॥ प्रत्याख्यान चौकड़ी मोई, जाके उदय न मुनि व्रत होई । सो संज्वलन चतुष्क बखानी, यथाख्यात पावै नहीं प्राणी ॥ ६॥ हास्य उदै रौं हांसी ठाने, रतिके उदै जीव रति माने । अरति उदय तें कछु न सुहावै, शोक उदै सेती विललावै ।। ७ ।। भयतें डरे जुगुप्स गिलान, पुरुष भाव तिन पावक जानं । गोठे की पावक समनारी, पंढापा जावे अगनि निहारी ॥ ८ ॥
अदाईसों मोह की, "तुम नाशक भगवान । ___ अटल शुद्ध अवगाहना, नमों सिद्ध गुणखान । ॐ हीं श्री णमो सिद्धाणं सिद्धपरमेष्ठिभ्यो मोहनीयकर्म विनाशनाय अर्घ्य ।
आयुकर्मनाशक मिद्ध जयमाला । जैसे नरको पांव. दियो काठमें थिर रहै।
तैसे आयुस्वभाव, जियको चहुँगति थिति करें। नरक आयुतै नरक लहे हैं, तेतिस सागर तहां रहे हैं। गाढ़ा कर आरेसों चीरे, कोल्हू मांहि डारकै पेरें ॥२॥ वैतरणी दुर्गन्ध नहावे, पुतरी अगनी मांहि गलावे । सूली देहि कड़ाई तावै, शाल्मली तल मांहि सुवावै ॥ ३॥ शीश तलै कर गिरिसैं डारे, नीचे वज्र मुष्टि सौं मारे। भूख प्यास तप शीत सहारी, पञ्च प्रकार सहै दुःख भारी॥४॥ पशु की आयु करै पशु काया, विना विवेक मदा विललाया। जन्म बैर जिय ते दुःख पावं, बाधमारकी कौन चलावै ॥ ५ ॥
सोरठा