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पुन्नी गं जा शोभ. पापी फाटे फपर ओढ़े। पुन्नी कथन धार कांग, पापी के फर पाला फोग ॥३॥ पुन्नी ग ट गानन्ना. पापी नंग पग धापन्ता । इन्नी रेशिम फिर पापी भी मोसले धाये ॥४॥ पन्नी अगन पर हो. पापी यात मुर्न नहिं कोई । इन्नी भान दर नित आर्य, पापी धन दंग्यन नहिं पाप ॥ ५ ॥ पुन्नी की नगन बा, पाणंबन की मुरा न लगाये। पुन्नी कर गंग न पार्ष, पापी को नित पापि मनापं ॥६॥ इन्नी नाप नाग, पापी नहै न फानी फार्ग। पुन्नी के मुन कर मा. पापी तरी दुमदाई ॥ ७॥ पुन्नी पगकिरा. पापी के फर से गिर जाय । पुन्नी पान के मुत भाग, पापी महादःमो अनि रोच ॥ ८॥
पुण्य पाप दोऊ डार, कमवदनी वृक्ष के। सिर जलावन हार, शानन निरचाधा करी ।। Cir reet Ralert Attar wri।
मोहनापकमनामक मिट जयमाला। ज्यों मदिगक पान नं. मुधबुध सवे भुलाय । त्यो मोहनी कम उढे, जीव गहिल हो जाय ।
पापा दरमन मोर नान परमार, नान कर सम्पक गुण साई। मिपा जुर्ग उदे जप आच, धम मधुर रम भूल न आव ॥२॥ मिश्र भार निपनिनि मनग्यातं, एक मग मम्मकमिध्या।। मम्पक प्रशानि मिथ्यान मताच, नाल मल मिधिल दीप उपजावे ॥३॥ चारित्र मोह पनीम प्रकार, जो मेट गम्पक आचारं।