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________________ जन पूजा पाठ समह २२७ प्रायोभिरेभिः पृथुभिरपि फलै रेभिरीशर्यजामि ॥ १६ ॥ ॐ ह्रीं श्री परमदेवाय श्रोअहं परमेष्ठिने अध्यं निर्वपामीति स्वाहा | दूरावनम्रसुरनाथ किरीटकोटी संलग्नरत्नकिरणच्छविधसरांघ्रिम् । प्रस्वेदतापमलमुक्तमपि प्रकृष्टैर्भक्त्या जलै जिनपतिं बहुधाभिषिंचे ॥ २० ॥ ॐ श्री भगवन्त रूपालसन्त श्रीवृषभादि वीर पर्यन्त चतुर्विशति तीर्थंकर परमदेव जिनाभिषेक नमये आये आये जम्बूद्वीपे भरतक्षेत्रे आर्यखण्डे नाम्नि नगरे माने मानान। नासोसमे पक्षे पर्वणि शुभ तिथौ वासरे मुन्द्रि यानि काणा श्रावक श्राविकाणा मन्कर्मक्षयार्थं जलेनाभिसिचेति स्वाहा। यह जन्त्र पड़कर भगवान के ऊपर शुद्ध जल की धारा देनी चाहिये । उदकचन्दन तन्दुलपुष्पकैश्चरुसुदीपसुधूपफलार्घकैः । धवलमंगलगानरवाकुले जिनगृहे जिननाथमहं यजे ॥ · ॐ ह्रीं श्री पभादिवीरान्तेभ्योऽनपदप्राप्तये अन्यं निर्वपामीति स्वाहा । उत्कृष्ट वर्णन व हेमरसाभिराम, देहप्रभावलयसंग मलुप्तदीप्तिम् । धारां घृतस्य शुभगन्धगुणानुमेयां, वन्देऽर्हतां सुरभिसंस्नपनोपयुक्ताम् ॥ B गाथा - जो घियचणवण्णदुइ जिणण्हावे धरि भाव | सो दुग्गयगइ अवहर जम्मनदुक्कड़पाइ ॥ अभिषेक मन्त्र में 'जलेनाभिपिचे' की जगह 'घृतेनाभिपिचे' पढें । इति घृत कलशाभिषेक | पीछे 'उदकचन्दनादि' बोल कर अर्ध चढाना चाहिये । लम्पूर्णशारदशशांकमरीचिजालस्यन्दैरिवात्मयशसामिव सुप्रवाहैः क्षीरैजिनाः शुचितरैरभिषिच्यमानाः, सम्पाद यन्तु मम चित्तसमीहितानि ॥
SR No.010455
Book TitleJain Pooja Path Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages481
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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