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पूर
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नाभिराज परमान तु देवा, माता मरुदेवी गुण नेता । सोल पन पर मेर याता, त्रिभुवननायक पुन विधाता ॥ ५ ॥ गर्भकल्यानक सुरपति फोधा, जन्मवस्थापक मेरुशिर गीधा । दीघापारी, केवल पोध सु त्रिभुवन प्यारी ॥ ६ ॥ अष्ट गुणाकर मिल दिवाकर, परम धर्म विस्तारण लय भर । श्रीवतार रहितं भय दा, वर्षमान्य निरपम गुणधारी ॥ ७ ॥
पता ।
जय आदि सु मला, त्रिभुवन श्राह्मा ब्रह्मास्यात्म स्वरूप परं । जय चोप्रा. पं सुनाना, ब्रह्मा सुमति जलधिनिकरं ॥
द
देवोऽनेक भवार्जितो गत महा पापः प्रदीपा नलः । देवः सिद्ध व विशाल हृदयालंकार हारोपमः ॥ देवोऽष्टादश दोप सिन्दुर घटा दुर्भेद पञ्चाननो । भव्यानां विदधातु वांछित फलं श्री आदिनाथो जिनः ॥ श्लोक-लक्ष्मीचन्द्रगुरुजीतो मूलसंघ विदाग्रणी ।
पट्टाभवचन्द्रो देवो दयानन्द विदांवरः ||
कीर्ति कुमुदेन्दु सुमतिः सागरोदितः । भक्तामर महास्तोत्र प्रजा चक्रीगुणाधिका ॥
श्री रिक्तियोग पूजा गमता ।