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जैन पूजा पाठ संग्रह
मलयागिर केशर अति सुन्दर, कुमकुम रंग वनाई । धार देत जिन चरणन आगे, सव आताप नसाई ॥ पा० ॐ ही श्री पार्श्वनाथ जिनेन्द्राय ससारतापविनाशनाय चन्दन निर्वपामीति स्वाहा ॥२॥ मोती साम अति उज्ज्वल, तन्दुल ल्यावो नीर पखारो। अक्षय पदके हेतु भावसों, श्रीजिलवर ढिग धारो ॥ पा० ॐ ह्रीं श्री पार्श्वनाथ जिनेन्द्राय रक्षयपदप्राप्तये अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा ॥३॥ बेला अर मचकुन्द चमेली, पारिजात के ल्यावो । चुन-चुन श्रीजिन अन चढ़ावो,सनवांछित फल पावो॥पा० ॐ हीं श्री पार्श्वनाथ जिनेन्द्राय कामवाणविव्यसनाय पुष्प निर्वपामीति स्वाहा ॥ ४ ॥ वावर फेनी गोजा आदिक, घृत में लेत एकाई । कञ्चन गार ललोहर भरके, चरणन देत चदाई ॥ पा० ॐ ही श्री पार्श्वनाथ जिनेन्द्राय सुधारोगविनाशनाय नैवेद्य निवपार्माति स्वाहा ॥ ५ ॥ मणिमय दीप रतनमय, लेकर जगमग जोत जगाई। जिलके आगे आरति करके, मोह तिलिर नस जाई॥पा० ॐ ही श्री पार्श्वनाथ जिनेन्द्राय मोहान्धकारग्निामनाय दीप निर्वपामीति स्वाहा ॥ ६ ॥ चूरलकर मलयागिरि चन्दन, धूप दशांग बनाई। तट णवक ने खेय भावसों, कर्मनाश हो जाई ॥ पा० ॐ ही श्री पार्श्वनाथ जिनेन्द्राय अष्टकर्मदहनाय धूप निर्वपानीति स्वाहा ॥ ७ ॥ श्रीफल आदि बदाम सुपारी, भांति-भांतिके लायो । भीजिनचरण चढ़ाय हर्षकर, तातै शिवफल पावो ॥ पा० छ ही श्री पार्श्वनाथ जिनेन्द्राय मोक्षफलप्राप्तये फल निर्वपामीति स्वाहा ॥ ८॥