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रविप्रत पूजा यह भवजन हितकार, सुरवित्रत जिन मही। करहु भन्यजन लोग, लु मन देके लही ।। . पूजों पार्थ जिनेन्द्र, नियोग लगाय के। . मिट सकल सन्ताप. मिले निधि आय के।। मति सागर इक लेट, करा अन्धन कही। उन्हीं ने यह पूजा कर. आनन्द लही ॥ सुरव सम्पति सन्तान, अतुल निधि लीजिये।
तातं रवित्रत सार, लो भरिजन कीजिये ।। दोहा-प्रणमो पाव जिनेश को, हाथ जोड़ शिरनाय ।
परभव मुख के कारने, पूजा कहूँ बनाय ।। एक पार व्रत के दिना, एही पूजन ठान ।
नापल सुरव सम्पति लहै, निश्चय लीजे सान ।। C MR.Rafae! Truarपोपट मादानन । कधी पाना
स्थापन । GAभी पापा मम मरिदितो मप मप पपट्।
अथाष्टकं
उज्ज्वल जल भरके अति लायो, रतन कटोरन माहीं। धार देत अति हर्ष बढ़ावन. जन्म जरा मिट जाहीं॥ पारसनाय जिनेश्वर पूजों, रवित्रत के दिन भाई। सुरु साति बहु होय, तुरत ही आनन्द मंगलदाई ॥ Oधी पायनाप निहाय पन्मन्युपिनाशनार जत निपानीति रमादा ॥१॥