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पाठमद
चौपई ११ नात्रा नमों ऋषभ कैलाशपहारं. नेमिना गिन्नार निहा। वासुपूज्य चम्पापुर बन्दी, सन्मति पगापुर अभिनन्दौं ॥शा चन्दौं अजित अजित-पढ-दाता. वन्दी नम्मर भव-दुःख-शता । चन्दौं अभिनन्दन गण-नायक, वन्दी नुमति ननतिक दायक २॥ चन्दौं पढम मुकति-पदमाग, वन्दी लगन गया-पामा ! वन्दी चन्द्रप्रभु प्रभुचन्दा, बन्दी नुनिधि लगिय-निधि-न्दा ॥२॥ पन्दौं शील अघ-तप-शीतल, पन्नी यात गंन महीतल । बन्दौं रिमा विमत उपयोगी, इन्दौं अनंत अनंत-मुखभोगी ॥४॥ चन्दौं धर्म धर्म-विम्नारा, चन्दौं शान्ति गान्ति-मन-धारा । दन्दों कंधु संयु-रवालं. रन्दों पर अरि-हर गुणमालं ॥५॥ इन्दौं मल्लि काम-मल-चूरन. पन्दी मुनिसुत्रत नव-पूरन । वन्दौं नरि-जिन नमित-तुरासुर. वहौं पाळणर्मनस-जग-हर ॥६॥ वीसों सिद्धभूमि ना ऊपर. गिखरसम्मेव-महागिरि भूपर । एकडार है जो कोई, ताहि नरक-पशु-गति नहिं होई ॥७॥ नरपतिनृप सुर शक कहावे. तिहुं जग-भोग भोगि शिव पात्र। दिवन-विनाशन मंगलकारी, गुण-विलास बन्दों भक्तारी ॥८॥ एचा-जो तीरथ जावं पाप मिटावै, ध्याचे गाई भगति कर ।
___ताको जस कहिये संपति लहिये, गिरित गुण को बुध उच।। ॐ ही श्रीचनुर्विगतिःकर निपापक्षेत्रेभ्यो पूर्ण निर्वानीति स्वाहा।