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________________ मैन पूजा पाठ सग्रह दुख-धाम-काम विनाश मेरो, जोर कर विनती करौं ।स. ॐ ही श्रीचतुर्विंशतितीर्थकर निवाणक्षेत्रेभ्यो पुष्प निर्वपामीति स्वाहा ॥ ४ ॥ नेवज अनेकप्रकार जोग, मनोग धरि भय परिहरौं । यह भूख-दुखन टार प्रभुजी, जोर कर विनती करौं ।स० ॐ ही श्रीचतुविंशतितीर्थंकर निर्वाणक्षेत्रेभ्यो नैवेद्य निर्वपामीति स्वाहा॥५॥ दीपक-प्रकाश उजास उज्ज्वल, तिमिरसेती नहिं डरौं । संशय-विमोह-विभरम-तम-हर, जोरकर विनती करौं।स० ॐ ही श्रीचतुविशतितीर्थकर निर्वाक्षेत्रेभ्यो दीप निर्वपामीति स्वाहा ॥ ६ ॥ शुभ-धूप परम-अनूप पावन, भाव पावन आचरौं । सब करम-पुञ्ज जलाय दीज्यो, जोरकर विनतीकरौं।स० ॐ ही धीचतुर्विंशतितीर्थकर निर्वाणक्षेत्रेभ्यो धूप निर्वपामीति स्वाहा ॥ ७ ॥ बहु फल मंगाय चढ़ाय उत्तम, चार गतिसों निरवरौं । निहचैमुकति-फल देहमोको,जोरकर विनती करौं।स० ॐ ही श्रीचविंशतितीयंकर निर्वाणक्षेत्रेभ्यो फल निर्वपामोति स्वाहा ॥ ८॥ जल गन्ध अक्षत पुष्प चरु फल, दीप धूपायन धरौं । "द्यानत' करो निरभय जगतसों,जोर कर विनती करौं सः ॐ हीं श्रीचतुर्विशतिनीयंकर निर्वाणक्षेत्रेभ्यो अब निर्षपामीति स्वाहा ॥ ९ ॥ जयमाला दोहा श्रीचौबीस जिनेश, गिरि कैलाशादिक नमों। नीरथ महाप्रदेश, महापुरुष निरवाणते ॥ ,
SR No.010455
Book TitleJain Pooja Path Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages481
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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