________________
[ १५ ] ॥ हमको० ॥२॥ जाके चार घातिया बीते, दोष जु गये बिलाय । सहित अनन्त चतुष्टय साहब, म. हिमा कही न जाय ॥ हमको० ॥३॥ ताकी या बड़ो मिल्यो है हमको, गहि रहिये मन लाय । द्यानत औसर बीत जायगो, फेर न कछू उपाय ॥४॥
(२८) ज्ञानी ज्ञानी ज्ञानी, नेमिजी ! तुम ही हो ज्ञानी टक। तुम्ही देव गुरु तुम्हों हमारे, सकल दरव जानी ॥ ज्ञानी० ॥१॥ तुम समान कोउ देव न देख्या, तीन भवन छानी । आप तरे भवजीवनि तारे, ममता नहिं आनी ।। ज्ञानी० ॥२॥ और देव सब रागी द्वेषी, कामीक मानी। तुम हो वीतराग अकषायी तजि राजुल रानी ॥ ज्ञानी. ॥३॥ द्यानतदास निकास जगततै, हम गरीब प्रानी ॥ ज्ञानी॥४॥
(२६) देख्या मैंने नेमिजी प्यारा टक। मूरति ऊ. पर करों निछाबर, तन धन जीवन जोवन सारा ॥ देख्या० ॥१॥ जाके नखकी शोभा आरौं कोटि काम छवि डारौं वारा । कोटि संख्य रवि चन्द