________________
( ४० ) जगतके तात ॥ रटि० ॥३॥ भूधर भजन किये निरबाह, श्रीग्द-पदम भँवर हो जाह ॥४॥ रटि०
८३ राग - गौरी।। मेरी जीभ आठौं जाम, जपि जपि ऋषभजिनिंद जीका नाम ॥टेका। नगर अजुध्या उत्तम ठाम, जनमै नाभि नृपतिके धाम ॥ मेरी० ॥१॥ सहस अठोत्तर अति अभिराम, लसत सुलच्छन लाजत काम ॥ मेरी० ॥२॥ करि थुति गान थके हरि राम, गनि न सके गणधर गुन ग्राम ॥ मेरो० ॥३॥ भूधर सार भजन परिनाम, अर सब खेल खेलके खांम(१)
मेरी० ॥४॥
८४ राग--धमाल । देखे देखे जगतके देव, राग रिससौं भरे ॥ टेक ॥ काहूके संग कामिनि कोऊ, आयुधवान खरे देखे० ॥१॥ अपने औगुन आपही हो, प्रकट करै उधरे । तऊ अबूझ न बूझहिं देखो, जन मृग भोर परे ॥ देखे० ॥२॥ आप भिखारी ह किनही हो, काके दलिद हरे । चढ़ि पाथरकी नावपै कोई, सुनिये नाहि तरे ॥ देखे० ॥३॥ गुन अनन्त जा देवमें
औ, ठारह दोष टरे । भूधर ता प्रति भावसौं दोऊ, कर निज सीस धरे ॥४॥