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( ३६ ) मल दल, लगत करूर कलाधर सियरा ॥ नेमि० ॥२॥ भूधरके प्रभु नेमि पिया विन, शीतल होय न राजुल हियरा ॥ नेमि विना० ॥३॥
८५ राग--ख्याल । मन सूरख पन्थी, उस मारग अति जाय रे ॥ ॥ टेक ॥ कामिनि तन कांतार जहां है, कुच परवत दुखदाय रे ॥ मन सूरख० ॥१॥ काम किरात बस तिह थानक, सरवस लेन छिनाय रे । खाय खता कीचकसे बैठे, अरु रावनसे राय रे ॥ मन मूरव० ॥२॥ और अनेक लुटे इस पैंड़े, वरनैं कौन बढ़ाय रे । वरजत ही वरज्यौ रह भाई, जानि दया मति खाय रे ॥ मन मूरख ॥३॥ सुगुरु दयाल दया करि भूधर, सीख कहत समझाय रे। आगैं जो भाव करि सोई, दोनो बात जनाय रे ॥ मन मूरख ॥४॥
८२ राग-विलाबल। रटि रसना मेरी ऋषभ जिनन्द,सुर नर जच्छ चकोरन चन्द ॥ टेक ॥ नामी नाभि नातिके बाल मरुदेवीके कुवर कृपाल ॥ रठि० ॥१॥ पूज्य प्रजापति पुरुष पुरान, केवल फिरन धरै जगभान ॥रटि. ॥२॥ नरकनिवारन विरद विख्यात, तारन तरन