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________________ ( ७४ ) चोरी करने वाले यारो मन माना धन पाते, मजे करें है अपने घर में बैठे ऐश उडाते । चलो चोरी० ॥ १ ( विरोधी ) मत चोरी करो मत चोरी करो, नाहक किसी का धन क्यों हरो ॥ टेक ॥ इस दुनियां में धन है भाइयो, प्राणों से भी प्यारा । जो कोई चोरी करके लावे वो होवे हत्यारा ॥ मत चोरी करो मत० ॥ २ ॥ (चोर) चोरी करने वाला यारो कभी न हो कंगाल । (सारा कुनवा ऐश उडावे मिलै मुफ्त का माल || चलो चोरी० ॥ ३ ॥ ( विरोधी) चोर उचके डाकू का, कोई न करे इतवार । घर बाहर नहीं इज्जत पावे, बुरा कहे संसार ॥ मत चोरी० ॥ ४ ॥ (चोर) चोर उचक्के डाकू जगमें, जत्रांमर्द कहलाते । नाम हमारा सुनके भाई, सभी लोग थते ॥ चलो चोरी० ॥ ५ ॥ ( विरोधी) बुरा काम चोरी है भाइयो, मतलो इसका नाम । पड़े जेलखाने में जाकर, नाहक हों बदनाम | मत चोरी करो मत चोरी करो० || ६ || (चोर) चोरी करने वाले यारो, जरा फिक्र नहीं करते । चाहे कैद होजांय वहां भी, पेट मजे से भरते ॥
SR No.010454
Book TitlePrachin Jainpad Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvani Pracharak Karyalaya Calcutta
PublisherJinvani Pracharak Karyalaya
Publication Year
Total Pages427
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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