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पौन । बलन अचंभा मानिया, बुझन अचंभा कौन जगमैं ||२|| जो छिन जाय सो आयमैं, निशि दिन
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कै काक | बांध सकै तो है भला, पानी पहिली पाल || जगमें ॥३॥ मनुष देह दुर्लभ्य है, मति चूक यह दाव । भूधर राजुलकंतकी, शरण सिताबी आव || जगमें | ४॥
७३ राग -- ख्याल |
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गरव नहिं कीजै रे, ऐ नर निपट गँवार ॥टेक॥ झूठी काया झूठी माया, छाया ज्यों लखि लीजै रे ॥ गरव ० || १|| कै छिन सांझ सुहागरु जोबन, कै दिन जगमें जोजै रे || गरव ॥ २ ॥ वेगा चेत विलम्ब तजो नर, बन्ध बढ़े थिति छीजै रे ॥ गरव ||३|| भूधर पलपल हो है भारो, ज्यों ज्यों कमरी भींजै रे || गरव ॥४॥
७४ राग -- ख्याल ।
देख्यो री ! कहीं नेमिकुमार || टेक || नैंननि प्यारो नाथ हमारो, प्रानजीवन प्राननआधार ॥ देख्यो० ॥ १॥ पीव वियोग विधा बहु पीरी, पीरी भई हलदी उनहार । होउ हरी तबही जब भेटौं, श्यामवरन सुन्दर भरतार || देख्यो || २ || विरह न