SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 371
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( ४५ ) ॥१॥ कहाँ है राम अरु लक्ष्मण कहां रावन से बलधारी, कहां हनुमन्त से योधा पता जिनके न था बल का । मुसाफिर०॥२॥ उन्हों को काल ने खाया तुझे भी काल खावेगा, सफर सामान उठकरत बनाले बोझको हलका। मुसाफिर० ॥३॥ जरासी जिंदगानी पर, न इतना मान कर मूरख । यह बीते जिंदगी पल मे कि जैसे बुद बुदा जलका । मुसाफिर० ॥ ४ ॥ नसीहत मान ले जोती, उमर पल पल में कम होती । जो करना आज ही करले, भरोसा कर न कुछ कल का । मुसाफिर० ॥ ५ ॥ (कव्वाली) जैन मत जब से घटा मूरख जमाना होगया, यानी सच्चा ज्ञान इकदम रवाना होगया ।।टेका। गल्तफहमी झूठ लाइल्मी गई हदसे गुजर, सचं अगर पूछो तो सब उलटा जमाना होगया ॥ जनमत० ॥१॥ जाते पाक ईश्वर को करता हरता दुनिया का कहें, हाय भारत आजकल बिल्कुल दिवाना होगया। जैनमत०||२|| कम्मफल दाता भी कोई और है कहने लगे, कैसी उलटी वात का दिलमें ठिकाना होगया ॥ जैनमत० ॥३॥ कोई कोई जीव की हस्ती से भी मुनकिर हुए, कैसा यह अज्ञान का दिल पै
SR No.010454
Book TitlePrachin Jainpad Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvani Pracharak Karyalaya Calcutta
PublisherJinvani Pracharak Karyalaya
Publication Year
Total Pages427
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy