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________________ [७९] कंचन भाजन धूर भरै मतरे, गज सज खात न ढाव-२ मत चढ़ चक्र बरत हो खरपै अमृत से ना पग धोच-३ मत चाटे असि सहत लपेटी, मत शूली चढ़ सोवै-४ मत मधुविंदु विषय के किारण, मग में काटे बोवै-५ श्री अरहंत पंथ में परले ज्यों नयनानंद होवै-६ ले लेरे सरन सले श्री भगवान ॥ टेक ॥ खेलरेने खेल घनेरे- पेलेरे पलान, सेले बांधे भेले कीये, पाप के सामान ॥ १ ॥ छोली रे तै छाती ले ले जीवन के प्राण, खोसेरेब्र परधन मोसे कंठ बेईमान ॥ २॥ देलेरे अनारी अपने हाथों से तू दान, जावोगे अकेले कागाखावेंगे मसान ॥३॥ एलेरे तू ग सुखदाई शिक्षा बुद्धिवान धेले को न लंगा कोई, काया ये निदान |॥ ४॥। १६३ राग जंगला झंझौटी । अरे मन मान मेरी फही, तज पाप चेत सही, संसार में तेरो कौन है क्यों मूढ़ पक्ष गही ॥टेक ॥ है परमब्रह्म तुही सर्वज्ञ ज्ञान मई, सम्यक्त बिन भया भ्रष्ट, तू चिरकाल विपति सही ॥१॥ ..स्वर्गादि विभव मई, तृश्शा तऊन गई, तो ओस सम नर भागते यह रोग जाय नहीं ॥ २॥ किन सीख तोहि दई, कर बमन फेर चही-मत खाय चतुप सुजान यह बहुबार भोगलाई ॥३॥ है समझमीत यही, तज भोग राख रही, कहै नैनसुख रहु विमुख इनरी, सीख सुगुरु की कही ॥४॥
SR No.010454
Book TitlePrachin Jainpad Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvani Pracharak Karyalaya Calcutta
PublisherJinvani Pracharak Karyalaya
Publication Year
Total Pages427
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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