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________________ [ ७८ १५६- रागनी झंझौटी। लारे जीवों की मय्या दया पालोरे, हेदया पालारे अदया टालोरे-तारे || टेक ॥ भय्या काया न खंडो न जिह्वा विदारानासा मैं रस्से मती डालोरे ।। १ ॥ भय्या अखि न फोड़ो न त्योरी चढ़ावो, कैड़े वचन के न घाव घालारे ।। २ ।। भय्या भोजन खिलादो पिलादो जी पानी-रोगी को औषध दे बैठालारे ॥३॥ ज्ञानी वनादो अज्ञानी को बीरन, करकै अभय सब के भय टालोरे ॥ ४ ॥ भय्या पालांगे अक्षा तो होमे नयन मुख सुनलो जिनेश्वर के मतवालोरे ॥५॥ अब तो चेतो पियग्वा चेतन चतुरप्यार मेटो अनादी ये भूल ॥ टेक ॥ हाथों सुमरनी कतरना बगल मैं, ये तो कुमतिया ऐसी बनाई जैसी होवे रजाई मैं शूल, पियारे ध्यारे जैसी होवै रजाई में शूल, अब तो-चेतो पियरवा चेतन ॥ १॥ धान दया पर पीड़ा विसारो, चोलो वचन लतवादी, रहोजी डारो चोरी के माथे में धूल ॥ २॥ मतना करो एरनारी की वांछा लघुदीरय सारी ऐसी गिनो जी जैसी माता वहन समतूल ॥ ३ ॥ त्यागी परिग्रह की तृश्ना नयन सुख, भाप सुमति मतराखै कुमति भाई बोवो न काटे चबूल ! जनम मतखोवे-जनम मत खावै अरे मतवारे ॥ टेक ॥ मत खवि तु धरम रतन को, मत भवसिंधु डवाव-१
SR No.010454
Book TitlePrachin Jainpad Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvani Pracharak Karyalaya Calcutta
PublisherJinvani Pracharak Karyalaya
Publication Year
Total Pages427
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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