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[६८ ] घुसकर-हरो कलुषता खारी-निजआत्म रस पीजे ॥ ३॥ नैनानंद बंध लब टूटें-क, व्याधि हत्यारी-मुक्ती में बस लीजे ॥४॥
१४०--राग बरचा पीलू खम्माचका दादारा वा
कजरी रागनी पूर्वी ।
मेरी करो करुणा परूजी थारे पांव-मेरी ॥ टेक ॥ लीनी तोरी शरणाजी-तीनों मोरे हरणा-जनम जरा मरणा ॥१॥ मोसो नहीं दुखियाजो-तोसो नहीं सुखिया-मैं मंगता तुम राव ॥२॥ काढ़ो कारागृह सैं जी-उभारो भवदहसैं-फर्म महा गढढाव ॥ ३॥ दीजो नैना सुख तुम-कीजो सारै दुख गुम-रखियोमत उरझाव ॥४॥
१४१ बरवा जंगला।
हे किसं बन ढूंढं आली-तज गये गुरु म्हारे संसार ॥ टेक ॥ होय बिरागी ममता त्यांगी-त्योगो मिथ्याचार-जन धन त्याग भये ब्रह्मचारी तृष्णा दई है बिसार ॥ १॥ साज दयारथ ले सतसारथ-सर्वपदारथडार-करपुरुषारथ-जय मदनारथ-पटक भएभवपार ॥२॥ भज भवभारथ-हरिभर्मारथ-धर्मारथ लियोलार-गयेकर्मारथ-विजय हितारथ-परमारथ पथसार ॥ ३॥ किस पर्वत किस फंदर अंदर किस समशान मंझार-ढं किस चौपट किस को टर-कौन नदी किलपार ॥४॥ के पक्षासन-कैखगाम्ननकैपर्य क पसार-जाने कहां तिष्टें किस ओसन जिन शासन अनुसार ॥ ५ ॥ मुनि अर्जिका श्रावक ऐय्यल-दुर्लभ इस संसार जो कहूँ दृष्टि पड़े तो बतादे-मानंगी उपगार ॥ ६ ॥ त्रिविध भेष