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पौन-किए देव जै जै कारा, भर भर झोरी, बरसा फूल दंद ताल महकै सुगंध चहकै मुचंग, षडताल, अन्में जिनेंद्र, भयो नाभि के अनंद- नैनानंद यों सुरेंद्र गए भक्ति फं बतलाक ॥४॥
१२८-मल्हार ।
शुभ के बदरवा झुक आएरी-शुभक हे झुकिआएयुकि आएरीटे. सखी अब नीक दिन आए-देखो जगत पुन्य घन धाए-१ सखि भविजन भाग विजोए-अहमेंद्र चयो अघ धोए-२ उझली सर्वारथ सृष्टी-भई ऋषभ जनम की वृष्टी-३ सखि जमे हरष अंकूर-अब फले कलपतरु पूरे-४ धन फल दुर्भिक्ष हटायो-शिव फल को संबत आयो-५ अभिलाष अताप निवारी-चलै शीतल पवन पियारी-६ सखि बरसैं अमृत फुवारे-सुन जै जै कार उचारै-७ सुर पुष्प रतन बरसावे-गंधर्व प्रभु के जस गावं-८ चलो अवधिनगर सुखदाई-प्रभु तात को देन बधाई-९ आवो दर्शन प्रमु जी को करलो-नयनानंद सैं घर भरलो-१०
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जुग जुग जीवा ऋषभ अवतार-तुम जुग जुग । तुम सकल जगत दुख हरण करन सुख, जुग जुग ॥ टेक। एक तो प्रभु तुम करी तपस्या, दूजे तीर्थकर अबतार । तीजे धर्म तीर्थ के कर्ता, मोक्ष पंथ दर्शावन हार ॥ १॥
चौथे स्वयं वुद्ध वृत धरिहो, करिहो भविजन को उद्धार । - तिरकै मोक्ष दरोगे साहिब, फेर न आवोगे संसार ॥२॥